देखता हूं जब भी तसवीर यारों की,
देखके अक्सर खयाल ये आये;
काश ये जीवन भी तसवीर बने और
वक्त उसीमें थम सा जाये।
बिछडे हैं जो भी नये पुराने
सारे वो दोस्त भी वहीं आ जाये।
सजते रहे सदा महेफिलों के दौर
अपने करीब कोई ग़म न आये
बाँध लूं वक़्त को उसी एक पलमें
ताकि हाथों से वक़्त फिसल न जाए
लेकिन सोचने से वक़्त कहाँ रुकता है?
समय का पहिया तो चलता ही जाए
आज और कल की भाग-दौड़ में
जीवन की शाम कहीं ढल ना जाए
तस्वीरे यार का क्या करी जब
दीदारे यार हम कर न पाए
गले लगा लेना जब भी मिलो तुम
जीवन में जाने कब क्या हो जाए
मिलाना जरुरी है दोस्तों का अक्सर
ताकि दोस्ती की डोर कहीं टूट ना जाए
Monday, March 14, 2011
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